रायपुर। भादो सप्तमी के अवसर पर सिंधी समाज के लोग शनिवार को घर में विधि प्रकार के व्यंजन बनाएंगे लेकिन वे इसे खाएंगे नहीं बल्कि अगले दिन रविवार को माता शीतला की पूजा – अर्चना करके बासी (एक दिन पहले बनाए) व्यंजनों का भोग अर्पित करेंगे, इस दिन किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलेगा। पूजा करके पूरे परिवार के लोग उस दिन ठंडा भोजन ही ग्रहण करेंगे। इसे सिंधी समाज में थधड़ी पर्व कहा जाता हैं।
सिंधी समाज के लोग शनिवार को सुबह से रात तक विविध व्यंजन बनाने के बाद रविवार की सुबह महिलाएं तालाब, कुआं के किनारे शीतला मंदिर में पूजा-अर्चना करेंगी। पूजा करके अपने साथ जल लाएंगी और घर में छिड़काव करके सभी की खुशहाली और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करेंगी। शीतला माता का जाप करते हुए ठार माता ठार पंहिजें बचिणन खे ठार कहते हुए प्रार्थना करेंगी। इसका अर्थ होता है कि हे मातारानी, हमारे पूरे परिवार पर कृपा बनाए रखना। ऐसी मान्यता है कि थधड़ी के दिन चूल्हा, सिलेंडर को नहीं जलाया जाता। अग्निदेव और शीतला माता के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। पूजा करके पूरे परिवार के लोग उस दिन ठंडा भोजन ही ग्रहण करेंगे। पूजा वाले दिन किसी घर में चूल्हा नहीं जलाया जाएगा।शीतला माता को अर्पित किए जाने वाले व्यंजनों में आटा, बेसन की मीठी और नमकीन रोटी, धुली मूंग दाल की रोटी, पूड़ी, सब्जियों में करेला, भाटा, भिंडी, परवल, दही बड़ा, दही रायता,
मीठा आदि व्यंजन बनाए जाएंगे।
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