सिंधी समुदाय का थदड़ी पर्व परंपरा व आस्था का प्रतीक, युवा नेता विशाल कुकरेजा ने थदड़ी पर्व की दी बधाई एवं शुभकामनाएं
रायपुर। सिन्धी समाज द्वारा शीतला सप्तमी पर मनाया जाने वाला थदड़ी पर्व बड़े धूम धाम से मनाया गया। इस अवसर पर युवा नेता विशाल कुकरेजा ने बताया कि किसी भी धर्म के त्यौहार और संस्कृति उसकी पहचान होती है। त्यौहार उत्साह, उमंग व खुशियों का ही स्वरूप है।लगभग सभी धर्मों के कुछ विशेष त्योहार या पर्व होते है जिन्हें उस धर्म से संबंधित समुदाय के लोग मानते है।ऐसा ही पर्व है सिंधी समाज का 'थदड़ी'। थदड़ी शब्द का सिंधी भाषा मे अर्थ होता है "ठंडी शीतल"। रक्षाबंधन के आंठवे दिन इस पर्व को समूचा सिंधी समुदाय हर्षोल्लास से मानता है।
विशाल कुकरेजा ने कहा कि आज से हज़ारों वर्ष पूर्व मोहन जोदड़ो की खुदाई में माँ शीतल देवी की प्रतिमा निकली थी।उन्ही की आराधना में यह पर्व मनाया जाता है। इस त्यौहार के एक दिन पहले हर सिंधी परिवार में तरह तरह के व्यंजन बनाये जाते हैं।जैसे कूपड,गच, कोकी,सुखी तली सब्जियां-भिंडी, करेला, आलू, रायता, दही-बड़े, मक्खन आदि।
विशाल कुकरेजा ने बताया कि रात को सोने से पूर्व चूल्हे पर जल छिड़क कर हाथ जोड़कर पूजा की जाती है।इस तरह चूल्हा ठंडा किया जाता है। दूसरे दिन पूरा दिन घरों में चूल्हा नही जलता है एवं एक दिन पहले बनाया ठंडा खाना ही खाया जाता है।इसके पहले परिवार के सभी सदस्य नदी,तालाब या कुएँ पर इकट्ठे होते हैं वहाँ माँ शीतला देवी की विधिवत पूजा की जाती है। इसके बाद बड़ो से आशीर्वाद लेकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
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